मौलिक अधिकार में संशोधन
मौलिक अधिकार में संशोधन
1.गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967 ई. )के निर्णय से पूर्व दिये गए निर्णयों में यह निर्धारित किया गया था कि संविधान के किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है ,जिसमे अनुच्छेद -368 एवं मूल अधिकार शामिल किया गया था।
2. सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद (1967 ई. )के निर्णय में अनुच्छेद -368 में निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से मूल अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी। अर्थात संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है।
3. 24 वे संविधान संशोधन (1971 ई. )द्वारा अनुच्छेद -13 और 368 में संशोधन किया गया तथा यह निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद -368 में दी गयी प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
4. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद के निर्णय में इस प्रकार के संशोधन को विधि मान्यता प्रदान की गयी अर्थात गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।
5. 42 वे संविधान संशोधन (1976 ई. ) द्वारा अनुच्छेद -368 में खंड 4 और 5 जोड़े गए तथा यह व्यवस्था की गयी इस प्रकार किये गये संशोधन को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है।
6. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980 ई. ) के निर्णय के द्वारा यह निर्धारित किया गया की संविधान के आधारभूत लक्षणों की रक्षा करने का अधिकार न्यायालय को है और न्यायालय इस आधार पर किसी भी संशोधन का पुनरावलोकन कर सकता है। इसके द्वारा 42 वें संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था द्वारा की गई व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया।
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