शिवाजी के उत्तराधिकारी

                                           शिवाजी के उत्तराधिकारी  
  • शिवाजी का उत्तराधिकारी शम्भाजी था। शम्भाजी ने उज्जैन के हिंदी एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया। 
  • मार्च ,1689 ई. को मुगल सेनापति मखरब ख़ाँ ने संगमेश्वर में छिपे हुए शम्भा जी एवं कवि  कलश को गिरफ्तार  लिया और उसकी  हत्या कर दी। 
  • शम्भाजी के बाद 1689 ई. में राजाराम को नए छत्रपति के रूप में राजयभिषेक किया गया। 
  • राजाराम ने अपनी दूसरी राजधानी सतारा को बनाया। 
  • राजाराम मुगलो से संघर्ष करता हुआ 2 मार्च ,1700 ई. मारा  गया। 
  • राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी -II का राजयभिषेक करवाकर मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका बन गई। 
  • 1707 ई. में औरंगजेब की  मृत्यु के बाद शंभाजी के पुत्र साहू (जो औरंगजेब के कब्जे में था )भोपाल के  निकट के मुगल शिविर से वापस महाराष्ट्र आया। 
  • साहू एवं ताराबाई के बीच 1707 ई. में खेड़ा  का युद्ध हुआ ,जिसमे साहू विजयी हुआ। 
  • साहू ने 22 जनवरी ,1708 ई. को सतारा में अपना राजयभिषेक करवाया। 
  • साहू के नेतृत्व नवीन मराठा साम्राज्यवाद  प्रवर्तक पेशवा लोग थे ,जो साहू के पैतृक प्रधानमंत्री थे। पेशवा पद पहले पेशवा साथ ही वंशानुगत हो गया था। पेशवा पुणे में रहता था। 
  • 1713 ई. में साहू ने बालाजी विश्वनाथ को पेशवा बनाया। इनकी मृत्यु 1720 ई. में हुई। इसके बाद पेशवा बाजीराव प्रथम हुए। 
  • पेशवा बाजीराव प्रथम ने मुगल साम्राज्य की कमजोर हो रही स्थिति का फायदा उठाने लिए साहू को उत्साहित करते हुए कहा कि आओ ,हम इस पुराने वृक्ष के खोखले तने पर प्रहार करें ,शाखाएँ तो स्वयं गिर जाएगी ,हमारे प्रयत्नों से मराठा पताका कृष्णा नदी से अटक तक फहराने लगेगी। उत्तर में साहू ने कहा -निश्चित रूप से ही आप इसे हिमालय के पार गाड़ देंगे ,नि :संदेह आप योग्य  पुत्र है। 
  • पालखेड़ा का युद्ध 7  मार्च 1728 ई. बाजीराव प्रथम  निजामुल मुल्क के बीच हुआ जिसमे निजाम की हार हुई। निजाम के साथ मुंगी  शिवगांव की संधि हुई। 
  • दिल्ली पर आक्रमण करने वाला प्रथम पेशवा बाजीराव प्रथम था ,जिसने 29 मार्च ,1737 ई. को दिल्ली पर धावा बोला था। उस समय मुगल बादशाह मुहम्मदशाह दिल्ली छोड़ने के लिए तैयार हो गया था। 
  •   बाजीराव प्रथम मस्तानी नामक महिला से सम्बन्ध होने के कारण चर्चित रहा था। 
  • 1740 ई.  बाजीराव प्रथम की मृत्यु हो गयी। 
  • बाजीराव प्रथम  मृत्यु के बाद बालाजी बाजीराव 1740 ई. में पेशवा बना। 
  • 1750 ई. में संगोला संधि का बाद पेशवा के हाथ में सरे अधिकार सुरक्षित हो गए। 
  • बालाजी बाजीराव को नाना साहब के  नाम से भी जाना जाता है। 
  • झलकी की संधि हैदराबाद के निजाम एवं बालाजी बाजीराव  हुई। 
  • बालाजी बाजीराव समय में ही पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी ,1761 ई. )हुआ ,जिसमे मराठो हुई। इस हार नहीं सह पाने के कारण बालाजी की मृत्यु 1761 ई. में हो गयी। 
  • माधवराव नारायण प्रथम 1761 ई. में पेशवा बना। इसने मराठो की खोयी हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। 
  • माधव राव ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की पेंशन पर रह रहे मुगल बादशाह शाह आलम -II को पुनः दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। मुगल बादशाह अब मराठो का पेंशनभोगी बन गया। 
  • पेशवा नारायण राव (1772 -1773 ई. )की हत्या उसके चाचा रघुनाथ राव के द्वारा कर दी गई। 
  • पेशवा माधवराव नारायण -II की अल्पायु  कारण मराठा राज्य देख - रेख बारहभाई सभा नाम की 12 सदस्यों  परिषद करती थी। इस परिषद के दो महत्वपूर्ण सदस्य थे -महादजी सिंधिया एवं नाना फड़नबीस। नाना फड़नबीस का मूल नाम बालाजी जनार्दन भानु था। अंग्रेज जेम्स ग्रांट डफ  इन्हे मराठो का मैकियावेली कहा था। 
  • अंतिम पेशवा राघोवा का पुत्र बाजीराव -II था, अंग्रेजो की  सहायता पेशवा बना था। मराठो  के पतन में सर्वाधिक योगदान इसी का था। यह सहायक संधि स्वीकार करने वाला प्रथम मराठा सरदार था। 
  • 1776 ई. में पुरंदर की संधि हुई। इसके तहत कम्पनी ने रघुनाथ राव  समर्थन को वापस ले लिया। 
  • प्रथम आंग्ल -मराठा युद्ध : प्रथम युद्ध 1782 ई. में सालबाई  के साथ खत्म हुआ।  
  • द्वितीय आंग्ल -मराठा युद्ध : 1803 -05 ई. में हुआ। इसमें भोसले (नागपुर )ने अंग्रेजो को चुनौती दी। इसके फलस्वरूप 7 सितंबर ,1803 ई. को देवगाँव की संधि हुई। 
  • तृतीय आंग्ल -मराठा युद्ध :1817 -1819 ई. में हुआ। इस युद्ध  के बाद मराठा शक्ति और पेशवा के वंशानुगत  पद  समाप्त कर  दिया गया। 
  • पेशवा बाजीराव -II ने कोरेगाँव एवं अष्टी के युद्ध में हारने के बाद फरवरी ,1818 ई. में मेल्कम के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया। अंग्रेजो ने पेशवा के पद को समाप्त कर बाजीराव -II को पुणे से हटाकर कानपूर निकट बिठूर पेंशन पर जीने के लिए भेज दिया ,जहां 1853 में इसकी मृत्यु  हो गयी।  

 

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