भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना

   भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना 


नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुतु किया गया उन्हें संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया |  संविधान के 42 वे संशोधन यह (1976 ई. )द्वारा यथा संशोधित यह उद्देशिका निम्न प्रकार है -

"हम भारत के लोग ,भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न ,समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिको को :

    सामाजिक ,आर्थिक और राजनितिक न्याय ,
    विचार ,अभिव्यक्ति ,विश्वास ,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता ,
    प्रतिष्ठा और अवसर की समता 
प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में 
    व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की 
    एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए 


द्रढ़ -संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर ,1949 ई. को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मार्पित करता है | " 



प्रस्तावना की मुख्य बातें :  


संविधान की प्रस्तावना को 'संविधान  की कुंजी ' कहा  जाता है | 

प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केंद्रबिंदु अथवा स्त्रोत 'भारत के लोग ' ही है | 

प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा -"हम भारत के लोग..... इस संविधान को "अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मर्पित करते है | "भारतीय लोगो की सर्वोच्च सम्प्रभुता  उद्घोष करते है | 

'प्रस्तावना ' को न्यायलय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन  ऑफ इण्डिया बनाम मदन गोपाल ,1957 के निर्णय में घोषित किया गया | 

बेरुबाड़ी यूनियन वाद (1960 )में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो ,वहाँ प्रस्तावना विधिक निर्वाचन में सहायता करती हैं | 

बेरुबाड़ी वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना | इसलिए विधायिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती | परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के केशवानंद भारतीय बनाम केरल राज्य वाद ,1973  ई. में कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है | इसलिए विधायिका (संसद )उसमे संशोधन कर सकती है | 

केशवानंद भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढाँचा का सिद्धांत दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढाँचा माना | 

संसद संविधान की मूल ढाँचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है ,स्पष्टतः संसद वैसा संशोधन कर सकती है, जिससे मूल ढाँचा का विस्तार व मजबूतीकरण होता है | 

42 वें संविधान संशोधन अधिनियम ,1976 ई. के द्वारा इसमें 'समाजवादी ','पंथनिरपेक्ष ' और 'राष्ट्र की अखंडता ' शब्द जोड़े गए | 



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