निम्न जाति के आंदोलन के मुख्य बिंदु
निम्न जाति के आंदोलन के मुख्य बिंदु
1921 की जनगणना के पश्चात विभिन्न जातियों को देसी जनमत द्वारा मान्यता प्राप्त सामाजिक श्रेष्ठता के आधार पर श्रेणीबद्ध किए जाने पर जातीय आंदोलन की तीव्रता प्राप्त हुई।
महाराष्ट्र क्षेत्र के निम्न जातीय आंदोलन को ज्योतिबा फूले से बहुत प्रेरणा मिली ज्योतिबा फूले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की तथा गुलामगिरी नामक पुस्तक की रचना की।
ज्योतिबा फूले ने किसानों की समस्या का समर्थन किया किसानों की समस्या को हल करने में विफल रहने की वजह से राष्ट्रीय कांग्रेस का विरोध किया।
महार जाति के पहले नेता गोपाल बाबा बुलंगकर थे फिर अंबेडकर ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया।
अंबेडकर ने अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ की स्थापना की।
गांधीजी ने 1932 में अस्पृश्यता विरोधी लीग की स्थापना की।
नाडार महाजन सभा की स्थापना 1910 में हुई।
1929 में अंबेडकर जी ने मुंबई में हितकारिणी सभा की स्थापना की।
1917 ईस्वी में पी त्याग राज टी एम् नैयर ने जस्टिस पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी को दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ भी कहा जाता है।
ई वी रामास्वामी नायकर ने 1935 में आत्मसम्मान आंदोलन प्रारंभ किया।
1991 में रमन पिल्लई मलयाली मेमोरियल का गठन किया।
1914 ईस्वी में के. रामकृष्ण पिल्लई तथा पदमनाभ पिल्लई नायर सर्विस सोसाइटी का गठन किया।
रामकृष्ण पिल्लई ने भारत में सर्वप्रथम कार्ल मार्क्स की जीवनी को प्रकाशित किया था।
1902-03 में श्री नारायण गुरु, डॉक्टर पल्लू, महान मलयालम कवि एन. कुमार आसान श्री नाराण धर्म परिपालन योगम की स्थापना की।
नारायण गुरु ने एक धर्म एक जाति तथा एक ईश्वर का नारा दिया जबकि उनके शिष्य सहदारन अय्यप्पन ने कोई धर्म नहीं कोई जात नहीं तथा कोई ईश्वर नहीं का नारा दिया।
त्रिपुरा नेनी नामक तेलुगु विद्वान ने शंबूक वध नामक काव्य लिखा, जिसमें उन्होंने शूद्रों के विरुद्ध आर्यों के बल प्रयोग के सिद्धांत को प्रकाशित किया।
त्रिपुरा नेनी विवाह विधि नामक पुस्तक लिखकर विवाह संस्कारों की तेलुगु में व्याख्या की थी।
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